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मांगलिक दोष क्या है ?

प्रायः विवाह के अवसर पर वर-वधू को कुण्डली का मिलान करते समय यह 'मंगलीक दोष' क्या है ? क्यों इसका विशेष रुप से विचार करते हैं। मंगलीक दोष होने से अथवा न होने से जातक को क्या हानि-लाभ होता है- प्रस्तुत इस 'मंगलीक दोष' प्रकरण में इसके विषय में चर्चा करते हैं। मंगल पाप ग्रह है। जब यह लग्न भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तो उस भाव पर इसका जो कुप्रभाव (बुरा असर) होता है उसे 'मंगल-दोष' कहते हैं तथा जिस जातक पर प्रभाव होता है। उस जातक को 'मंगलीक' कहते हैं। कुण्डली के 1, 4, 7, 8 और 12 वें भाव के अन्तर्गत 'मंगल कितना मंगलीक' का विचार किया जाता है । प्रथम भाव से शरीर, चतुर्थ भाव से सुख, सप्तम भाव से काम विचार (पति-पत्नी सुख) तथा अष्टम भाव से मृत्यु का विचार किया जाता है। जातक के जीवन में आने वाली मुसीबतों का भी विचार इसी भाव से करते हैं। द्वादश भाव से व्यय, हानि आदि का विचार करते हैं। जातक के लिए मंगल कितना मंगलीक है' का विचार, चर्चा इस पुस्तक में आगे चलकर करेंगे। प्रस्तुत पुस्तक में 'मंगलीक-योग' के विषय में लिख रहे हैं। प्रस्तुत अध्याय को पाठकगण विशेष ध्यान देकर पढ़ें- यदि जातक की कुण्डली के चतुर्थ भाव में मंगल की दृष्टि पड़े तो जातक को भौतिक सुख कम प्राप्त होता है। सप्तम भाव में मंगल की दृष्टि हो तो पारिवारिक सुख में कमी होती है। आठवें भाव में मंगल की दृष्टि पड़ने पर जातक के जीवन में अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाएँ उपस्थित होती है। द्वादश भाव में मंगल की दृष्टि व्यय अधिक होता है जिसके कारण जातक चिन्तित रहता है।

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मंगल/मांगलिक दोष समाप्त होने का समय-

प्राय: 28 वर्ष पश्चात् जातक पर 'मंगलीक दोष' समाप्त हो जाता है। इसके अलावा निम्न स्थितियों में 'मंगलीक दोष' समाप्त हो जाता है।

1.मेष राशि का मंगल लग्न में, वृश्चिक राशि का चतुर्थ भाव में, मकर राशि का सप्तम भाव में, कर्क राशि का अष्टम भाव में, धनु राशि का द्वादश भाव में हो तो मंगलीक दोष नगण्य हो जाता है।

2. वर-वधू (विवाह के लिए) की कुण्डली मिलाते समय 1, 4, 7, 8 अथवा 12वें भाव में शनि स्थित हो तो 'मंगलीक दोष' समाप्त हो जाता है।

3.कुण्डली के द्वितीय भाव में चन्द्र + शुक्र की युति हो, केन्द्र में चन्द्र + मंगल की युति हो अथवा गुरु मंगल को पूर्ण दृष्टि से देखता हो।

4.मेष या वृश्चिक का मंगल चतुर्थ भाव में, कर्क या मकर का मंगल सप्तम भाव में, मीन का मंगल अष्टम भाव में तथा मेष या कर्क का मंगल व्यय भाव में स्थित हो।

5.बली गुरु शुक्र की राशि या अष्टम भाव में हो तथा सप्तमेशं बलवान होकर केन्द्र अथवा त्रिकोण में हो।

6. वर-कन्या में से किसी एक की कुण्डली में मंगलीक योग हो तथा दूसरे की कुण्डली में मंगल योग कारक भाव में कोई पाप ग्रह स्थित हो तो 'मंगलीक दोष' शून्य हो जाता है।

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लाल किताब के मतानुसार मंगल के शुभ-अशुभ के भाव-

लाल किताब के 'मूल ग्रन्थ' के अनुसार मंगल चौथे और आठवें भाव में अशुभ होता है, शेष 1, 2, 3, 5, 6, 7, 9, 10, 11, 12 वें भाव में शुभ फल प्रदान करता है। यदि मंगल किसी भवन में अकेला बैठा है तो जातक चिड़ियाघर के कैदी की भाँति होता है।

मंगल/मांगलिक दोष निवारण के उपाय-

मेष लग्न में मंगलीक मेष लग्न का जातक मंगलीक हो तो निम्नलिखित उपाय करके सुखद जीवन व्यतीत कर सकता है।

1. लाल रुमाल अपने पास रखें।

2. तंदूर में मीठी रोटी पकाकर कुत्ते को खिलाये।

3. चाँदी के कड़े में लोहे की कील लगवाकर धारण करे।

4. दक्षिण दिशा के द्वार वाले मकान में न रहे।

5. ताँबे अथवा सोने की अंगूठी में साढ़े पाँच रत्ती मूंगा जड़वा कर धारण करे। नकली मूंगा हानिकर सिद्ध होगा।

6. किसी कंवारी कन्या को मीठा खिलाये। बहन को भी मीठा खिलायें।

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मंगल पूजा : ॐ भौमाय नम :

पूजा, का अर्थ है, भक्ति और श्रद्धा | पूजा शब्द को 'पु-जय' या पूजा से व्युत्पन्न माना जाता है, अब शब्द पूजा को पूजा के सभी रूपों जैसे साधारण दैनिक प्रसाद से लेकर फल, फुल, पत्ते, चावल मिठाइयाँ, मंदिरों और घरों में देवताओं को समर्पित करने के लिए किया जाता है, पूजा के तीन प्रकार होते हैं: "दीर्घ", "मध्य" और "लघु" | पूजा केवल मंदिरों में ही नहीं, बल्कि अधिकांशतः घरों में दिनों के कार्यक्रम का आरंभ भगवान की पूजा से की जाती है | जागरण / भजन / कीर्तन / रामायण या ग्रंथों का अध्ययन/ पूजा अनुष्ठान का उद्देश्य हमारे चारों ओर आध्यात्मिक बलों की स्थापना है | मंगल पूजा-अनुष्ठान का उद्देश्य बाधाओं को हटाना है | जो जप करके प्राप्त किया जाता है. विशिष्ट पूजा के द्वारा हम हानिकर बल से छुटकारा, सुख, शांति और समृद्धि पा सकते है | नए उद्यम शुरू करने में सकारात्मक कंपन पैदा करने के लिए, घर, नौकरी, व्यवसाय में बाधाएं दूर करने के लिए, शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए, नेतृत्व कौशल बढ़ाने के लिए हम साधना करके लाभ बढ़ा सकते हैं | सामान्य तरीकों में ध्यान, मंत्र जप, शांति, प्रार्थना शामिल हैं | उपवास या भगवान का नाम जप, धर्मदान. ये मनोरथ से किया जा सकता है | मंगल पूजा, मंगल ग्रह के लिए समर्पित है | मंगल शांति पूजा ऋण, गरीबी और त्वचा की समस्याओं से राहत के लिए लाभकारी है | इन कार्यों के परिणाम के लिए सक्षम हो हमें और अधिक गहरा आध्यात्मिक पूजा द्वारा लागू ऊर्जा आत्मसात करने के लिए मंगल पूजा करने की ज़रूरत है |

मंगल दोष शमन

मंगल दोष के शमन का सरल एवं अचूक उपाय मंगल ग्रह का भात पूजन है | जिसके अनुसार सर्वप्रथम पंचांग कर्म जिसमे गनेशाम्बिका पूजन , पुण्याहवाचन, षोडश मातृका पूजन, नान्दी श्राद्ध एवं ब्राह्मन पूजन किया जाता है | तत्पश्चात भगवान मंगल देव का दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, अष्टगंध, इत्र एवं भांग से स्नान करा कर मंगल स्त्रोत का पाठ किया जाता है | शिव के रूप में होने के कारण रुद्राभिषेक या शिवमहिम्न स्त्रोत का पाठ किया जाता है | उसके बाद पके हुए चावल को ठंडाकर उसमे पंचामृत मिलाकर मंगलेश्वर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है एवं आकर्षक श्रृंगार किया जाता है | षोडशोपचार पूजन आरती करके अग्नि स्थापन, नवग्रह एवं रूद्र स्थापन पूजन कर हवन किया जाता है | विद्वानों के अनुसार मंगल ग्रह की प्रकृति गर्म है | अत: शीतलता एवं मंगल दोष की निवृत्ति के लिए भगवान मंगलदेव को भात चढ़ाया जाता है | मंगल दोष युक्त जातक जिनके विवाह में बाधा आ रही हो उन्हें अवश्य मंगलनाथ में भात पूजन करवाना चाहिये |

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मंगल दोष निवारण पूजा करने के लिएपंडित श्रीकांत गुरूजी से संपर्क करे

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आचार्य पंडित श्रीकांत शर्मा

मंगल दोष निवारण पूजा

कुंडली में मंगल जब लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में होता है तब मंगल दोष माना जाता है. अगर मंगल लग्न और अष्टम स्थानमें हो तो ज्यादा गंभीर होता है. मंगल क्रूर ग्रह होने की वजह से, विवाह पर इसका प्रभाव समस्याएं ही बढ़ाता है. मंगल पूजा कर के यह दोष दूर किया जाता है.

मंगल पूजा उज्जैन तब की जाती है जब व्यक्ति के जीवन में विवाह संबंधी समस्याएं होती हैं। मंगलनाथ मंदिर इस पूजा के लिए प्रसिद्ध है. यह मंगल ग्रह के साथ जुड़ा हुआ है। मंगल आत्म-सम्मान, स्वभाव, अहंकार और संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक आक्रामक ग्रह है। यदि मंगल जन्म चार्ट (कुंडली) के विशिष्ट क्षेत्रों में होता है, तो आप आक्रामक और हिंसक हो सकते हैं और इससे संभवतः वैवाहिक विवाद हो सकता है. आप मंगलिक हैं या नहीं, आपके कुंडली द्वारा निर्धारित किया जाता है। आपकी कुंडली आपके जन्म की तारीख, वर्ष, समय और स्थान पर आधारित होती है.

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पंडित श्रीकांत गुरूजी

Ujjain Puja

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